*उम्मीदों को नवीन, पंख मिल गए है*
उम्मीदों
को नवीन, पंख मिल
गए है॥
मंजिल
तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥
परीक्षा
पर चर्चा से, ग्रंथियां खुली हैं।
खुशियों
की सतरंगी,रंग मन घुली हैं।।
दिशाएं
नई, नवल, प्राण-बल मिला है।
आपके
स्नेह से उर, कमलदल खिला है।
विज्ञान ज्ञान अर्जन के,ग्रंथ मिल गए हैं।
मंजिल
तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥
आपकी मधुर वाणी, स्नेह रस सनी है॥
हिम्मत
मिली है मानो, किस्मत बनी है।
परिश्रम से सफलता की साधना सिखाये।
बलिदान से राष्ट्र की, आराधना सिखाये॥
शक्ति पाकर कलम की,प्रखर हो गए हैं।
मंजिल
तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥
हिम्मत करो जग में, आगे बढ़ो तुम।
प्रगति के सारे ,शिखर पर चढ़ो तुम॥
सवालों के बंधन रुला ना सकेंगी।
सफलता तुम्हारे, चरण चूम लेंगी॥
भंवर पार करने के, हुनर मिल गए हैं।
मंजिल
तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥
आगाज हैं हम, आवाज हैं हम ।
साहस से युद्ध की, साज हैं हम॥
भारत को विकसित बनाने का सपना॥
राष्ट्र आराधना अब तो संकल्प अपना।
शुद्ध हैं हम,अब तो,प्रबुद्ध बन गए हैं।
मंजिल
तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥
चमकेंगे दिनकर सम व्योम ऊपर॥
हौसलों से ये तारे भी होंगे जमीं पर॥
रोशनी सूर्य सी जगमगाएंगे जग को।
ज्योतित करेंगे मानवता के मग को॥
हरेक
रोम कण को, स्पंदन दिए हैं।
मंजिल
तक पहुंचने के, पंथ खुल गए हैं॥
--उमेश यादव, शांतिकुंज, हरिद्वार,9258363333
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