रक्षाबंधन पर्व प्यार का, बंधवाना राखी, तू आजा।
शुष्क ह्रदय हो रहे हमारे,प्रेमामृत से सरस बना जा।।
संग पले हैं,खेले हैं हम,लडे बहुत हैं,बहुत किये तंग।
साथ साथ में पढ़ लिखकर, हुए बड़े भी हैं तेरे संग।।
तुम्हे सताया जिन हाथों से,उसमें रक्षासूत्र सजा जा।
रक्षाबंधन पर्व प्यार का, बंधवाना राखी, तू आजा।।
अपने हिस्से की रोटी भी,सहज मुझे खिला जाती थी।
मुझको था माखन पसंद, तू मेरे लिए छुपा लाती थी।
हर संकट से तुम्ही लड़ी,अब हाथों से खीर खिला जा।
रक्षाबंधन पर्व प्यार का, बंधवाना राखी, तू आजा।।
हर गलती पर डांटा तुमने, हुआ जो अच्छा खूब सराहा।
सही गलत समझाया मुझको,हद से ज्यादा तुमने चाहा।।
सत्पथ सदा दिखाया दीदी,फिर माथे पर तिलक लगा जा।
रक्षाबंधन पर्व प्यार का, बंधवाना राखी, तू आजा।।
घर की चुलबुल चिड़िया भगिनी,खुशियों से चहकाती थी।
नंदनवन के फूलों सा तू, घर आँगन को महकाती थी।।
तेरा ही घर है यह बहना,कुछ पल अपने घर भी आजा।
रक्षाबंधन पर्व प्यार का, बंधवाना राखी, तू आजा।।
-उमेश यादव
शुष्क ह्रदय हो रहे हमारे,प्रेमामृत से सरस बना जा।।
साथ साथ में पढ़ लिखकर, हुए बड़े भी हैं तेरे संग।।
तुम्हे सताया जिन हाथों से,उसमें रक्षासूत्र सजा जा।
रक्षाबंधन पर्व प्यार का, बंधवाना राखी, तू आजा।।
मुझको था माखन पसंद, तू मेरे लिए छुपा लाती थी।
हर संकट से तुम्ही लड़ी,अब हाथों से खीर खिला जा।
रक्षाबंधन पर्व प्यार का, बंधवाना राखी, तू आजा।।
सही गलत समझाया मुझको,हद से ज्यादा तुमने चाहा।।
सत्पथ सदा दिखाया दीदी,फिर माथे पर तिलक लगा जा।
रक्षाबंधन पर्व प्यार का, बंधवाना राखी, तू आजा।।
नंदनवन के फूलों सा तू, घर आँगन को महकाती थी।।
तेरा ही घर है यह बहना,कुछ पल अपने घर भी आजा।
रक्षाबंधन पर्व प्यार का, बंधवाना राखी, तू आजा।।
-उमेश यादव
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