राम रावणी दोष गुणों का
राम रावणी दोष गुणों का,मन में रहे निवास।
छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।
रामचरितमानस बतलाता,मन को श्रेष्ठ बनाएं।
वध करना है अहंकार का, उर में राम बसायें।।
मन में जो रावण पलता है, उसका करें
विनाश।
छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।
स्वार्थ लोभ मद मोह क्रोध सब रावणी
दुर्गुण हैं।
घृणा द्वेष भय मत्सर इर्ष्या, ये सारे
अवगुण हैं।।
सेवाभाव सदाचारी मन, बिखराते दिव्य
प्रकाश।
छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।
अहंकार के रावण ने, मन को ऐसा भड़काया।
अपने भी हो गए वीराने,लेकिन समझ न आया।।
दम्भी खुद को ज्ञानी समझा,कुल का किया विनाश।
छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।
कर्मों का फल उसे पता था,पर कुकर्म ना छोड़ा
अधर्म अनीति अन्यायों से, उसने मुंह न मोड़ा।।
कर्मों का फल मिलता ही है, मिलता है भवपाश।
छोड़ें दुर्गुण और गुणों का, करते रहें विकास।।
-उमेश यादव
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