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बुधवार, 26 अगस्त 2020

इस दु:ख की घड़ी में, निर्धन के साथ आयें।

इस दु:ख की घड़ी में, निर्धन के साथ आयें।

करें सम्मान उन का, आज उनको हँसाएं।।


जो महल बनाते रहे, बिना छत उन्हें सुलाया।

जिनने सबको हँसाया, हमने उनको रुलाया।।

किराये के भय से, ना उन्हें हम ड़राएं।

इस दु:ख की घड़ी में, निर्धन के साथ आयें।


जिनने गाड़ियाँ बनायी, पैदल उन्हें चलाया।

चल पड़े हमें वो तज के,ना उनको रोक पाया।।

जहाँ जा रहे वो, वहां उनको पहुचाएं ।

इस दु:ख की घड़ी में, निर्धन के साथ आयें।


जो धान्य उगाते हैं ,उन्हें अन्न को तरसाया।

ना पेट भर सके वो, जिनने जग को खिलाया।।

पूछें अगल बगल में, ना भूखे  उन्हें सुलायें।

इस दु:ख की घड़ी में, निर्धन के साथ आयें।


जिनसे फैक्ट्रीयाँ हैं चलती,वो आज निराश्रित है।

जिनके सहारे हम थे, आज वो पीडित हैं ।।

मौका मिला है हमको,वो फर्ज हम निभाएँ।

इस दु:ख की घड़ी में, निर्धन के साथ आयें।।

 --उमेश यादव